बँधे होने और जुड़े होने में अंतर है। यह अंतर बहुत आसानी से दिखता नहीं है। बल्कि इनमें अंतर ही नहीं विरोध भी होता है। पूरी प्रकृति, सृष्टि एक अपर से जुड़ी हुई है या फिर जुड़ने का विकास है। इसे हम अक्सर गलती से इस तरह समझने लगते हैं कि पूरी प्रकृति, सृष्टि एक दूसरे से बँधी हुई है या फिर बँधने का विकास है। प्रेम में हम जुड़ते हैं, बँधते नहीं हैं! जुड़ाव जब बंधन में बदलने लगता है तब मन में बहुत उपद्रव मचता है। अपर्याप्त किंतु उपयुक्त उदाहरण! प्रेम जुड़ाव है, विवाह बंधन। इसलिए प्रेम जब विवाह में बदलता है तो जो असुविधा उत्पन्न होती है वह असल में, जुड़ाव के बंधन में बदलते जाने से पैदा होती है। जो लोग जुड़ाव को बंधन में बदलने को रोकने में जाने-अनजाने जितना कामयाब रहते हैं, वे प्रेम को बचाने में उतना ही कामयाब होते हैं। बंधन स्थिति है, जुड़ाव गति है! जीवन स्थिति में गति और गति में स्थिति से संभव होता है। पूरी प्रकृति गतिशील भी है और स्थितिशील भी; चर (variables) और (constants), जड़ और जंगम से समृद्ध है। बँधे होने और जुड़े होने का अंतर साफ न हो तो गुलामी और संबंध का अंतर साफ नहीं रहता है, न मुहब्बत और मेहरबानी का अंतर साफ रहता है, हम भयानक मानसिक उपद्रव के शिकार होते रहते हैं। इस मानसिक उपद्रव के कारण नैसर्गिक प्रेम तत्त्व में छीजन उत्पन्न होता और जीवन का मनोरम पक्ष कलुषित..
सर्ग का अर्थ होता है, बंधन। निःसर्ग का अर्थ होता है, बंधन का न होना। नैसर्गिक निःसर्ग से विकसित विशेषण है। नैसर्गिक संबंध में जुड़ाव का एहसास तो होता है, बंधन का बोध नहीं होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें